सिवालखास का मसीहा

जब मम्मी 2014 मे छोड़ के चली गयी थी तो 8 महीने बाद माँ वैष्णों देवी की कृपा से मेरे घर बेटी आयी थी, मैने सोचा कि माँ गयी तो बेटी आ गयी। 6 साल की हो गयी बेटी सिद्धि लेकिन मै उसको कभी टाइम नही दे पाया। 😰😰 आज 2 साल हो गये सिवालखास विधानसभा क्षेत्र मे दिन रात काम करते हुए। ये रोज मुझे कॉल करती है मै कहता हुँ आ रहा हुँ क्षेत्र मे हुँ तो मासूमियत से कहती है ये क्षेत्र क्या है? तुम तो झूठ बोलते हो, रात के 11 -12 बजे तक घर के छज्जे पे खड़े होकर मेरा इंतज़ार करती है और बाद मे रोते हुए सो जाती है। क्षेत्र से घर जाता हुँ तो इसके सोने के बाद और आता हुँ इसके जागने से पहले... ये तो 2 साल के सिवालखास के संघर्ष की कहानी है। इससे पहले भी मै कहाँ इसको समय दे पाया। 2014 मे ये पैदा हुई, 2015 मे मै दिल्ली चला गया, 2016 मे JNU आंदोलन मे तिहाड़ जेल चला गया 4 महीने जेल रहा, जेल से आया तो अमित शाह जी ने बुलाया टिकट के लिए लेकिन उसी समय शिवपाल जी को मंत्री पद से हटा दिया तो भाजपा मे जाने और भाजपा के टिकट पे सिवालखास से चुनाव लड़ने का विचार त्याग के मै शिवपाल जी की हिमायत मे लखनऊ चला गया। अगस्त 2016 को लखनऊ गया तो फरवरी 2017 तक शिवपाल जी के साथ रहा, उनके जसवंतनगर विधानसभा के चुनाव मे काम किया, 2017 मे फिर राजनितिक आंदोलन मे मेरठ जेल चला गया, जेल से आया तो एक्सीडेंट हो गया, 4 महीने तक हॉस्पिटल और बेड रेस्ट पे रहा। फिर हॉस्पिटल से आया तो राजनितिक बदलाव के लिए जमीन तलाशने राजस्थान चला गया। 2018 मे नोयडा शिफ्ट हुए काम काज बढ़ाने मे व्यस्त हो गये, दवा कंपनी खोली तो नोयडा के तत्कालीन एसएसपी ने फ़र्ज़ी तरीके से जेल भेज दिया, फिर जेल से आये तो फिर जेल चले गये, 2 बार नोयडा जेल से रिहा होकर फिर स्थापित होना चाहा कि बच्चो के साथ रहा जाये तो फिर एक पुराने राजनितिक आंदोलन के मुक़दमे मे मार्च 2020 को जेल चला गया, और 6 महीने बाद अगस्त मे मेरठ जेल से निकला। उसके बाद से सिवालखास मे ऐसा रमा कि इसको टाइम ही नही दिया। आज जब इसको मेरे बेटे अभिमन्यु ने बताया तो ये रो पड़ी मुझे मेरी पत्नी, बहने मना कर रहे है कि पैदल मत आओ। अपमान हुआ है, धोखा हुआ है तो उसका जवाब सिवालखास की जनता चुनाव मे देगी, या चुनाव छोड़ो मेरठ छोड़ो कहीं दूर चलते है , मेरठ से दूर,दुश्मनों से दूर, मुकदमो के झंझटो से दूर... कहीं ऐसी जगह जहाँ आराम से बच्चो के लिए समय मिल सकें जहाँ आराम से कारोबार कर सकें। कारोबार भी कहाँ बचा है करोड़ो का माल सड़ गया है, हरिद्वार फैक्ट्री मे माल पड़ा है लेकिन वहाँ झांके तक नही 2 साल मे.. सिवालखास की जनता के लिए हॉस्पिटल, एम्बुलेंस , मृतको के मुआवजे और हजारों मदो पे खर्च करते करते 7- 8 करोड़ का कर्ज़ हो गया तो, जिसको चुनाव बाद संपत्ति बेच के या बैंक से लोन लेकर उतारेंगे। लगातार 2 दिन से कॉल आ रहे थे मै जवाब नही दे रहा था। अब थक हार के एक उम्मीद के साथ मेरी बेटी ने ये वीडियो मुझे व्हाट्सअप पे भेजी है। देखते ही मै बहुत रोया। घंटो तक। मै लखनऊ मे हुँ लखनऊ मे मै बहुत बड़ी त्रासदियों मे भी नही रोया। सैकड़ो बार् टिकट की बात करके अखिलेश जी ने टिकट काटा तब नही रोया, MLC और मंत्री बनाने के वादे और लिस्ट मे नाम शामिल करने के बाद नाम काट दिया गया तब नही रोया। शिवपाल जी द्वारा प्रदेश अध्यक्ष बनाने का वादा किया था, जबकी नेता जी के दबाव मे मेरे स्थान पे किसी अन्य को सपा युवजन सभा का प्रदेशाध्यक्ष बना दिया गया था तब नही रोया। अखिलेश जी ने मुझे लखनऊ जेल मे 4 महीने तक रखा तब नही रोया। मुझपे देशद्रोह का आरोप लगाया गया। देशद्रोह वाली धारा हटाने के लिए शिवपाल जी ने दिन रात एक कर दिया था लेकिन अंततः अखिलेश जी ने उस धारा को मंजूरी दे दी। अपने ही नेता के हाथ से, उनकी कलम से खुद पे देशद्रोह की धारा की मंजूरी होते समय नही रोया, सडक दुर्घटना के बाद 20 हड्डी टूटने, एक साथ दर्जन भर ऑपरेशन के बाद नही रोया। पहले शिवपाल जी ने टिकट को मना किया तब नही रोया। बाद मे फिर से मना हुआ तब नही रोया। लेकिन आज मै खुद को रोक नही पाया। कमरे मे मेरे साथी सो रहे है, लेकिन मै इस पोस्ट को लिखते हुए, इस वीडियो को देखते हुए रो रहा हुँ... राजनीति बड़ी निर्मम है। तुम राजनीति के लिए घर परिवार, माँ बाप, भाई बहन, बच्चो से दूर हो जाते हो लेकिन जब तुमको पीड़ा होती है... तो राजनीति नही परिवार ही विलाप करता है। इसी बेटी के सर पे हाथ रखकर मेने 3 जनवरी की रैली मे कसम खायी थी कि सबको तो 5 साल देते हो मुझे 31 दिसंबर 2022 तो सिर्फ 9 महीने दे दो। 9 महीने मे 100 करोड़ का विकास ना करवा पाया तो अपने बच्चो को लेकर , विधायकी से इस्तीफा देकर, मेरठ से दूर चला जाऊंगा लेकिन अब लगता है 9 महीने की भी जरूरत नही है।।। यदि मै अपनी बेटी का अच्छा पिता नही बन सकता तो एक अच्छा विधायक कैसे बन सकता हुँ ? साथियो मै विधानसभा मे पैदा होने वाली बेटियों को 11000 शगुन देने की योजना चला रहा हुँ, बेटी हो या बेटा, निर्धन गर्भवती महिलाओ को निशुल्क ऑपरेशन और मेटरनिटी सुविधा दे रहा हुँ लेकिन मेरी इस मासूम सी बच्ची को रुला रहा हुँ.. बताओ क्या मै एक अच्छा पिता हुँ? जो अपना परिवार नही संभाल सकता वो 4 लाख लोगो की विधानसभा क्या संभालेगा? मै क्या लिख रहा हुँ ? क्या करूंगा? क्या करना है ? फिलहाल मुझे कुछ नही मालूम। निशब्द हुँ , दुखी हुँ, द्रवित हुँ, मन से घायल हुँ और सबसे बड़ी टीस ये है कि सोने की चम्मच लेकर पैदा हुए राजनीति को अपनी बपौती समझने वाले राजपूत्रों द्वारा अपमानित हुँ। मुझे बताओ अब मै क्या करूँ???? निर्णय जनता की अदालत पे छोड़ रहा हु? स्वाभिमान् से जीना है या राजनेताओं की गुलामी मे तिल तिल करके मरना है? मै तुम्हारे लिए जीने को भी तैयार हुँ और मरने को भी। विधानसभा क्षेत्र आपका तो निर्णय भी आपका ।
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